भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस-2023) भारत में 1 जुलाई 2024 से लागू एक नयी न्याय संहिता।

भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस-2023) भारत में 1 जुलाई 2024 से लागू एक नयी न्याय संहिता। 

हाल ही में, सरकार ने तीन नए कानून लागू किए हैं जिनका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश कालीन कानूनों को रिप्लेस करना है। इस वीडियो में, हम इन तीनों नए कानूनों का समग्र विश्लेषण करेंगे और जानेंगे कि ये किस तरह से हमारी न्याय प्रणाली को प्रभावित करेंगे। भारतीय अपराधिक न्याय प्रणाली में कई सालों बाद हमें बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं इसको लेकर के तीन नए कानून सरकार ने लागू किए हैं जिनका प्राथमिक उद्देश्य ब्रिटिश कालीन कानूनों को रिप्लेस करना हैतो आज इस वीडियो में हम इन्हीं तीनों कानूनों का समग्र विश्लेषण जानने की कोशिश  करेंगे कि ये जो नए तीन कानून सरकार की ओर से पेश किए गए हैं इन कानूनों की वजह से हमें क्या बड़े बदलाव देखने को मिल सकते है । 


1. खबर के महत्वपूर्ण बिंदु

2. तीनों नए कानूनों का परिचय

    - भारतीय न्याय संहिता

    - भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता

    - भारतीय साक्ष्य अधिनियम

3. इन कानूनों की आलोचना और संभावित चुनौतियाँ


1 जुलाई 2024 से भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में बड़े बदलाव लागू हो रहे हैं। इन बदलावों के तहत तीन नए आपराधिक कानून पेश किए गए हैं:

1. भारतीय न्याय संहिता (BNS)

2. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)

3. भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BEA)


इनका उद्देश्य पुराने कानूनों जैसे भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) को रिप्लेस करना है।


भारतीय न्याय संहिता (BNS) - 


भारतीय न्याय संहिता (BNS) 163 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता (IPC) को रिप्लेस करेगी। इसमें कुल 318 धाराएँ हैं जो 511 धाराओं वाली IPC की जगह लेंगी। इस संहिता में कुछ नए अपराध शामिल किए गए हैं, जैसे:

- विवाह का झूठा वादा कर यौन संबंध बनाना: 10 साल की सजा

- जाति, नस्ल, या समुदाय के आधार पर हत्या: विशेष अपराध

- मोब लिंचिंग को लेकर प्रावधान: सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले के तहत

- संगठित अपराध और आतंकवाद: सामान्य कानून के दायरे में

- स्नैचिंग को अलग अपराध के रूप में मान्यता


भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) - 


BNSS, दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) को रिप्लेस करेगी। इसमें कानून के प्रावधानों को लागू करने की प्रक्रिया मक पहलुओं की बात की गई है:

- पुलिस हिरासत की अवधि 15 दिनों से बढ़ाकर 90 दिन

- अनुपस्थिति में परीक्षण का प्रावधान

- एक से ज्यादा अपराध दर्ज होने पर वैधानिक जमानत का प्रावधान समाप्त

- आपराधिक मामलों में 45 दिनों के भीतर फैसला


भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BEA) - 


भारतीय साक्ष्य अधिनियम, इंडियन एविडेंस एक्ट (IEA) को रिप्लेस करेगा। इसमें साक्ष्य यानी सबूतों को प्रोसेस करने के प्रावधान हैं:

  1. - इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड्स को सबूत के रूप में मान्यत
  2. - मौखिक साक्ष्य को इलेक्ट्रॉनिक रूप से लेने की अनुमति
  3. - पीड़िता का बयान ऑडियो-विजुअल माध्यम से दर्ज
  4. - महिला पुलिस अधिकारी ही महिला पीड़िता का बयान दर्ज कर सकती हैं


आलोचना और चुनौतियाँ - 

- पुलिस हिरासत की अवधि बढ़ाने को लेकर विवाद: पुलिस की विवेकाधीन शक्तियाँ बढ़ सकती हैं।

- विवेकाधीन शक्तियों का दुरुपयोग: आतंकवाद और संगठित अपराध के प्रावधानों को लेकर स्पष्टता की कमी।

- शब्दों की अस्पष्ट परिभाषाएँ: आतंकवाद की सही परिभाषा का अभाव, जो अनुचित दुरुपयोग की संभावना को बढ़ाता है।



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Kalasa Banduri Project - कलसा बंडूरी परियोजना विवाद

Budget 2024 - मोदी सरकार के बजट 2024 में पीएम किसान सम्मान निधि की संभावित बढ़ोतरी: किसानों के लिए बड़ी सौगात?