Kalasa Banduri Project - कलसा बंडूरी परियोजना विवाद
Kalasa Banduri Project - कलसा बंडूरी परियोजना विवाद
पृथ्वी के 3/4 भाग पर जल है, लेकिन उसमें से अधिकांश खारा जल है। अगर हम फ्रेश वाटर की बात करें तो केवल 2.5% पानी ही हमारे लिए उपलब्ध है जो कि फ्रेश वाटर है। इसका भी अधिकांश हिस्सा ग्लेशियर के रूप में, भूजल के रूप में या झीलों के रूप में है। फ्रेश वाटर का केवल 0.49% ही नदियों में पाया जाता है।
आज हम ऐसे ही एक विवाद की चर्चा करेंगे जो दशकों से चला आ रहा है और हाल ही में फिर से चर्चा में है। इस विवाद का नाम है कलसा बंडूरी परियोजना विवाद। सबसे पहले देखते हैं कि यह चर्चा में क्यों है, फिर जानेंगे कि यह परियोजना क्या है और किन-किन राज्यों के बीच में विवाद है।
कलसा बंडूरी परियोजना का महत्व :
गोवा और कर्नाटक दोनों ही इस जल को अपने लिए महत्त्वपूर्ण मानते हैं। कर्नाटक कहता है कि महाद नदी का पानी मोड़ कर पेयजल संकट को हल किया जाए। गोवा का कहना है कि इससे पर्यावरणीय संकट उत्पन्न होंगे और जल की कमी हो सकती है।
कलसा बंडूरी परियोजना का उद्देश्य - 1989 में बनाई गई इस परियोजना का उद्देश्य कर्नाटक के बेलगावी, धारवाड़ और गडक जिलों में पेयजल की आपूर्ति करना है। योजना के तहत महाद नदी के जल को कलसा और बंडूरी नामक सहायक नदियों के माध्यम से मोड़कर माल प्रभा नदी में ले जाया जाएगा।
कलसा बंडूरी परियोजना विवाद का इतिहास - 1980 के दशक में विवाद की शुरुआत हुई और 1989 में गोवा और कर्नाटक के बीच एक पैक्ट हुआ, लेकिन कुछ समय बाद यह पैक्ट अधर में चला गया। 2001 में कर्नाटक ने केंद्र से पानी मोड़ने की अनुमति मांगी लेकिन गोवा ने अपनी आपत्ति दर्ज की। 2006 में गोवा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की।
कलसा बंडूरी परियोजना के लिए न्यायाधिकरण का गठन - 2010 में केंद्र सरकार ने न्यायमूर्ति जे एम पंचाट की अध्यक्षता में एक ट्रिब्यूनल का गठन किया और 2016 में अंतरिम निर्णय दिया। 2018 में गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच जल का आवंटन किया गया।
परियोजना की वर्तमान स्थिति - हाल ही में, 7 जुलाई 2024 को कर्नाटक के बेलगावी जिले में प्रवाह नामक टीम ने निरीक्षण किया। प्रवाह का काम नदी जल विवादों को सुलझाना और जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करना है।
जल विवादों के निपटारे के लिए भारतीय संविधान - अंतरराज्यीय नदी जल विवादों के निपटारे के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 262 के तहत ट्रिब्यूनल का गठन किया जाता है। यह निर्णय उच्चतम न्यायालय और अन्य न्यायालयों द्वारा चुनौती नहीं दिया जा सकता है।
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