रानी लक्ष्मी बाई के बाद पुत्र दामोदर राव का क्या हुआ ? झांसी की रानी के बेटे दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों ने क्या सुलूक किया?
रानी लक्ष्मी बाई के बाद पुत्र दामोदर राव का क्या हुआ ? झांसी की रानी के बेटे दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों ने क्या सुलूक किया?
बुंदेले हर बोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी। सुभद्रा कुमारी चौहान की इन कालजयी पंक्तियों में हमने रानी लक्ष्मीबाई की वीरगाथा को सुना। अंग्रेजों ने कानून बनाया कि दत्तक पुत्र को राजा नहीं माना जाएगा, इसलिए रानी लक्ष्मीबाई ने उनसे युद्ध किया। भारत का बच्चा-बच्चा इस कहानी को जानता है, लेकिन उस बच्चे की कहानी शायद कम ही लोग जानते होंगे जिसके लिए यह सारी लड़ाई हुई थी। दामोदर राव, रानी लक्ष्मीबाई के इस इकलौते पुत्र का क्या हुआ, जानेंगे आज के ब्लॉग में।
रानी लक्ष्मी बाई के बाद पुत्र दामोदर राव का क्या हुआ ? झांसी की रानी के बेटे दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों ने क्या सुलूक किया?झांसी की रानी के पुत्र दामोदर राव की कहानी का प्रारंभ -
यह कहानी शुरू होती है साल 1849 से। 15 नवंबर की तारीख थी, महाराष्ट्र के परोला में आनंद राव का जन्म हुआ। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि बेटा राजा बनेगा। तीन साल बाद, झांसी के महाराज गंगाधर राव ने उन्हें गोद ले लिया। महाराज के अपने पुत्र की मृत्यु हो चुकी थी और गद्दी का कोई वारिस नहीं था, इसलिए उनके रिश्ते में भाई लगने वाले वासुदेव राव ने अपना पुत्र महाराज को दे दिया। इस तरह आनंद राव का नाम पड़ा दामोदर राव और झांसी के अगले महाराज बनेंगे, यह तय हुआ।
अंग्रेजों की साजिश और रानी लक्ष्मीबाई का संघर्ष -
महाराज की मृत्यु के बाद, सत्ता पर काबिज हुईं महारानी लक्ष्मीबाई। दामोदर राव छोटे थे, इसलिए रानी लक्ष्मीबाई ने राजमाता का रोल निभाया। लेकिन अंग्रेजों को यह मंजूर नहीं हुआ। महाराज की मृत्यु के बाद, लक्ष्मीबाई ने एक दूत कलकत्ता भेजा लॉर्ड डलहौजी के पास, जो तब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल थे। लक्ष्मीबाई ने संदेश भिजवाया कि दामोदर राव अगले महाराज होंगे। लेकिन डलहौजी ने साफ इंकार किया। कंपनी बहादुर ने डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स के तहत यह कहा कि दत्तक पुत्र वारिस नहीं माना जाएगा।
दामोदर राव की कठिनाइयों से भरी जीवन यात्रा -
रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया और युद्ध के मैदान में उतर गईं। ग्वालियर में अंग्रेजों से लड़ते हुए उन्होंने वीरगति प्राप्त की। इसके बाद, दामोदर राव के जीवन में कठिनाइयों का दौर शुरू हुआ। मराठी इतिहासकार वायन खेलकर ने इतिहास च शहाली में दामोदर राव के संस्मरण को दर्ज किया है।
रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु के बाद, दामोदर राव ने अपने साथियों के साथ जंगलों में शरण ली। अंग्रेजों से बचने के लिए उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। ग्वालियर से चंदेरी जाते हुए, दामोदर राव को जंगलों के रास्ते ले जाया गया क्योंकि अंग्रेजों के डर से कोई उन्हें आसरा देने को तैयार नहीं था।
झांसी की रानी के पुत्र दामोदर राव का अंततः इंदौर में जीवन -
अंग्रेजों से बचते-बचाते, दामोदर राव और उनके साथियों ने विभिन्न स्थानों पर शरण ली। ग्वालियर से भागते वक्त, उनके पास 60 हजार रुपये थे, लेकिन रिश्वत देते-देते वह पूरी तरह खत्म हो गए। एक मुखबिर की वजह से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उनकी पहचान गुप्त रखी गई।
दामोदर राव को इंदौर के कर्नल के पास ले जाया गया और उन्हें वादा किया गया कि उन्हें मृत्यु दंड नहीं दिया जाएगा। कई मुश्किलों के बाद, मई 1860 में दामोदर राव इंदौर पहुंचे। यहां उन्हें मुंशी धर्म नारायण के हवाले किया गया। कंपनी ने वादा किया कि उन्हें हर साल 10 हजार रुपये पेंशन दी जाएगी।
दामोदर राव का अंतिम समय -
दामोदर राव ने अपने संस्मरणों में यहीं तक की कहानी बताई है। इसके आगे उनका क्या हुआ, इसके बारे में डिटेल में जानकारी नहीं है। कुछ दस्तावेजों के अनुसार, अंग्रेजों ने उनके नाम से अपने ट्रस्ट में जो पैसे डाले थे, वह उन्हें कभी नहीं मिले। अपनी जिंदगी के आखिरी दिन उन्होंने मुफलिसी में बिताए। इंदौर में रहते हुए उन्होंने शादी की जिससे उन्हें एक बेटा हुआ। उनके वंशज आज भी इंदौर में रहते हैं और अपने नाम के आगे 'झांसी वाले' लगाते हैं।
दामोदर राव के जीवन की कहानी हमें यह बताती है कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने पुत्र के लिए अंग्रेजों से संघर्ष किया और वीरगति प्राप्त की। लेकिन उनके पुत्र दामोदर राव का जीवन भी कठिनाइयों से भरा रहा। झांसी की रानी की वीरता और उनके पुत्र की संघर्षमयी जीवन यात्रा हमें हमेशा प्रेरित करती रहेगी।
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